जन आस्था का केंद्र सिद्ध पीठ महर्षि पाराशर धाम महर्षि पाराशर की पवित्र तपोस्थली रही है। यह स्थल टहला से लगभग 13 किलोमीटर व खोह तिबारा से 3 किलोमीटर अरावली पर्वत शृंखलाओं के बीच स्थित है। पौराणिक समय से ही देशभर के साधु संतों और श्रद्धालुओं का आस्था का केंद्र है। बड़ी संख्या में लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। किवदंति है कि पौराणिक काल में महर्षि वशिष्ठ के पुत्र शक्तिमुनि के हत्यारों का समूल नाश करने के लिए खोह क्षेत्र में आज के पाराशर धाम पर राक्षस नाशक यज्ञ किया था। यज्ञ की समाप्ति के बाद इसी स्थान पर उन्होंने विष्णु महापुराण, चारों वेद ग्रन्थों की रचना की व साथ ही सूर्य विज्ञान ज्योतिष, सूर्य गणना ग्रन्थों की रचना भी यहीं पर की थी। इन सभी मान्यताओं के चलते आज भी यह स्थान जन आस्था का केंद्र बना हुआ है ।
1. विष्णु पुराण की रचना
महर्षि पाराशर धाम के मंहत घनश्यामदास महाराज व किवदंति और लिंगपुराण के अनुसार कहा जाता है कि राक्षस यज्ञ में जब एक एक कर दैत्यों की मृत्यु होने लगी तो दैत्यराज पुलत्सय और वशिष्ठ ऋषि यज्ञ पर स्थल आए और पाराशर से यज्ञ रोकने का आग्रह किया। महर्षि पाराशर को तपोबल से अपने पिता के दर्शन करवाए और पाराशर ने यज्ञ रोक दिया। इससे प्रसन्न होकर महर्षि वशिष्ठ व महर्षि पुलत्सय ने पाराशर को विष्णु पुराण लिखने को कहा। पाराशर ने चारों वेद, सूर्य विज्ञान, सूर्य गणना ज्योतिष आदि का ज्ञान प्रदान किया। महर्षि पाराशर ने फलित और गणित ज्योतिष एंव खगोल गणना के ग्रन्थों की रचना यहीं पर की।
2. कर्ण का दाह संस्कार
महाभारत के रचयिता वेदव्यास महर्षि पराशर के पुत्र थे। महाभारत में उन्होंने लिखा है कि महर्षि पाराशर ने खोह के पर्वत के मध्य हथेली पर दानवीर कर्ण के शव का दाह संस्कार किया था। कर्ण को यह वर था कि उनका शव दाह भगवान सूर्य के पुत्र होने के कारण पृथ्वी पर न हो। वर्तमान पाराशर के आश्रम के पीछे पहाड़ बीच में जला हुआ है, जिसके अवशेष वर्तमान में भी देखने को मिलते हैं।
3. वट वृक्ष की जडें
राक्षस नाशक यज्ञ स्थल का वट वृक्ष नहीं रहा किन्तु एक सौ वट वृक्षों की जडें आज भी मौजूद हैं, जहां राक्षस नाशक यज्ञ किया था। प्राचीन झरना पहाड़ से गिरता व कुण्ड से प्रवाहित जलधारा के समीप भव्य देव मन्दिर पाराशर धाम बना हुआ है। यहां अष्ठमी, एकादशी, पूर्णिमा व सावन मास में अनुष्ठान होते रहते हैं।
4. रात में बरसता है चंदन
आश्रम के मंहत घनश्यामदास व भक्तजन बुजुर्ग बताते हैं कि पाराशर धाम ऋषि मुनियों की तपोस्थली रहने के साथ ही अत्यंत पवित्र है। राक्षस यज्ञ के अवशेष भी यहां मौजूद हैं। वर्तमान समय में भी यहां रात के समय हल्के पीले रंग की बूंदे गिरती हैं जो चदंन सी लगती है । यह नजारा प्राकृतिक कुंड के आसपास व पाराशर तपोस्थली की सीढिय़ों पर सवेरे के समय देखा जा सकता है। महर्षि पाराशर के धुणे में अखंड ज्योत जलती रहती है। ऐसा बताते हैं कि वर्तमान समय में भी महर्षि पाराशर मुनि वर्ष में एक बार यज्ञ स्थल पर आते हैं। संतों ने बताया कि सूर्य विज्ञान से ही भगवान राम ने किरणों को संयोजित कर पौराणिक काल में रावण का वध किया था।